शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 10

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झील के किनारे सार्जेंट सलीम फटी-फटी आंखों से शेयाली को देखे जा रहा था। “तुम जिंदा हो!” सार्जेंट सलीम के मुंह से बेसाख्ता निकला। “मैं क्यों मरने लगी भला!” शेयाली पलकें झपका-झपका कर उसे देखे जा रही थी। “तुम यहां कैसे पहुंचीं?” सलीम ने पूछा। “उसने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। वह कह रहा था मेरी-तुम्हारी शादी होनी है।” शेयाली ने मुस्कुराते हुए कहा। “लेकिन अभी तक तो मेरे अब्बा की भी शादी नहीं हुई।” सार्जेंट सलीम ने घबराए हुए से अंदाज में कहा। “यह अब्बा क्या होता है।” “अम्मी के शौहर को उनके बच्चे अब्बा क