बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 25

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भाग - २५ 'लेकिन! जब निश्चिंत हो गई हो तो फिर मन में लेकिन क्यों बना हुआ है?' 'नहीं मेरा मतलब है कि तुम्हारे घर वाले हमारे रिश्ते को मान लेंगे, अगर ना माने तो, तब क्या होगा, तब तुम कहीं पीछे तो नहीं हट जाओगे ?' 'देखो मैंने घर वालों से पूछकर तुम्हें नहीं अपनाया, ठीक है। मैंने अपनी मर्जी से तुम्हें अपनाया। इसलिए अब किंतु-परंतु का कोई मतलब नहीं है। हमारे रिश्ते को मानेंगे तो ठीक है, नहीं तो अलग रहेंगे। अपनी दुनिया अलग बसायेंगे। इतनी सीधी सी, सामान्य सी बात को तुम अपनी परेशानी का कारण क्यों