जी हाँ, मैं लेखिका हूँ - 12

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कहानी 12 - ’’ समर्पण से कहीं आगे ’’ रेचल शनै-शनै सीढियाँ चढ़ती हुई छत पर आ गई। प्रातः के नौ बज रहे थे। वह आज छत की साफ-सफाई करवाने के लिए ऊपर आयी है। मजदूर छत पर बेकार पड़ी वस्तुओं को एक तरफ हटा कर रख रहा था। वह उसे अनावश्यक पड़ी वस्तुओं हटाने तथा आवश्यक चीजों को सही स्थान पर रखने का निर्देश देती जा रही थी। । अगले माह रेचल की बड़ी पुत्री का व्याह है। विवाह की तैयारियों मे अजीत भी जी-जान से जुटा है। रेचल ने छत से चारों तरफ देखा। आज खुला आसमान कितना