जी हाँ, मैं लेखिका हूँ - 10

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कहानी -10- ’’ विमर्श आवश्यक नही ’’ जीवन के जो क्षण, दिन, माह, वर्ष, व्यतीत हो जाते हैं, वो क्यों नही हमारी स्मृतियों से भी मिट जाते। बीते समय क्यों हमारे एकान्त पलों में दस्तक देने लगते हैं, स्मृतियों के पन्ने खुलते जाते हंै पृष्ठ दर पृष्ठ................ .......... ’’ नताशा ! देखना बेटा, वरूण की दवा का समय होने वाला है।’’ अपने श्वसुर रामदीन के कहने से पूर्व ही नताशा वरूण की दवा देने के समय का पूरा ध्यान रखे हुए थी। वरूण को ठीक एक बजे खाना देना है। उससे पूर्व उसे दवा देनी है। खाना तैयार है। वह