२१. संदेह और असमंजसता का चक्र एक बार फिर जाकर देखा आरिणी ने. कोई अंतर नहीं था… आरव एक अबोध शिशु की भाँति निद्रामग्न था. उसने कोशिश की जगाने की… लेकिन उसे नहीं जागना था, सो नहीं जागा. आरव सोता रहा.. और घर की दिनचर्या यूँ ही चलती रही. तीसरे दिन दोपहर को आरव की नींद पूरी हुई. अब जाकर वह स्नान कर के बेहतर लग रहा था. उसे सहज देख कर आरिणी ने उससे साफ़ शब्दों मे पूछ लिया- “शादी की रस्मों से ही इतना थक गए. शादी कैसे निभाओगे श्रीमान”, आरिणी ने अपने चिर परिचित अंदाज में नाराज