१६. कुछ आगे भी आज रविवार था. रविवार यानी आराम का दिन. पर भरोसा कुछ भी नहीं. न जाने कौन सा ऐसा काम आ पड़े, या कोई इमरजेंसी. फिर भी… रविवार सबके लिए एक राहत ही लेकर आता है. सप्ताह भर की गहमागहमी के बाद एक दिन तो आराम का होना ही चाहिए. पर, कहाँ हो पाता है आराम गृहणी के लिए वही तो सबसे कठिन दिन होता है. जैसे परीक्षा हो हर सप्ताह उसकी. और परीक्षा लेने वाले कौन… निर्दयी बच्चे.... जिनकी फरमाइशें कभी पूरी नहीं होती. पति भी साथ में मिल जाएँ तो क्या कहना. शेफ़ के हाथों