असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 16

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16 ‘जिन्दगी जीने के लिए है और विश्वविद्यालय मंे तो मजे ही मजे। मौजां ही मौजां। याद है अपन जब विश्वविद्यालय मंे पढ़ते थे तो एक प्रोफेसर ने क्या लिखा था सरस्वती के मन्दिर मंे ध्वज भंग। कैसा मजा आया। पूरी यूनिवरसिटी हिल गई। सबकी जड़ंे हिल गई। सबकी शान्ति भंग हो गई। चांसलर, वाईस चांसलर तक बगले झांकने लगे। ‘फिर वे प्रोफेसर निलम्बित हो गये।’ ‘तो क्या उसके बाद बहाल होकर पूरी पेेंशन, पी.एफ लेकर घर गये।’ ‘लेकिन अब ये सब करने को जी नहीं चाहता।’ ‘इस श्मशानी वैराग्य को छोड़ो महाराज। उठो। धनुष बाण और कलम रूपी हथियार