आत्मकथ्य शैली में भवभूति

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आत्मकथ्य शैली में भवभूति भवभूति का पदमपुर (विदर्भ) से प्रस्थान मैं भवभूति............ के नाम से आज सर्वत्र प्रसिद्ध हो गया हूँ। मेरे दादाजी भटट गोपाल इसी तरह सम्पूर्ण विदर्भ प्रान्त में अपनी विद्वता के लिये जाने जाते थे। मैं अपनी जन्मभूमि में श्रीकण्ठ के नाम से चर्चित होता जा रहा था। मेरे दादाजी ने शायद मेरे प्रारंभिक स्वर को महसूस करके मेरा नाम श्रीकण्ठ रखा था। मेरा गायन में कण्ठ स्वर बहुत अच्छा था। इसी कारण मेरे दादाजी ने अपनी कुछ कवितायें मुझे रटा दीं थीं। उन्हें दादाजी की मित्र मण्डली के समक्ष सुरीले स्वर में सुनाने