जी हाँ, मैं लेखिका हूँ - 9

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कहानी--9- ’’ पीले पत्ते ’’ राजेश्वर की नींद तो न जाने कब की खुल चुकी थी। कदाचित् प्रातः चार से पूर्व, किन्तु वह बिस्तर पर लेटे-लेटे बहुत देर तक यूँ ही करवटें बदलते रहे । चार बजे उठ कर बाथरूम भी हो आये। पानी भी पी लिया। खिड़की का पर्दा सरका कर देखा तो बाहर अँधेरा था। आ कर पुनः बिस्तर पर लेट गये। किन्तु नींद नही आ रही थी। विस्तर पर उन्हें कमरे के अन्धकार में भी खुली आँखों से जैसे सब कुछ दिख रहा था। कमरे में चलते पंखे, दीवारों पर टँगे कलैण्डर, दवाईयों की मेज, कोने मंे