असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 9

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9 कुलदीपक और झपकलाल हिन्दी के परम श्रद्धेय मठाधीश आचार्य के आवास पर विराजमान थे। आचार्यश्री आलोचक, सम्पादक, प्रोफेसर थे। छात्राआंे मंे कन्हैया थे और छात्रांे मंे गोपियांे के प्रसंग से कक्षा लेते थे। अक्सर वे कक्षा के अलावा सर्वत्र पाये जाते थे। कई कुलपतियांे को भगाने का अनुभव था उनको। ऐसे विकट विरल आचार्य के शानदार कक्ष मंे ढाई आखर फिल्मांे के पर चर्चा चल निकली। आचार्य बोले। ‘आजकल कि फिल्मांे को क्या हो गया है। न कहानी, न गीत, न अभिनय।’ ‘सर इन सब के तालमेल का नाम ही फिल्म है। और मनोरंजन के नाम पर देह-दर्शन ही