16. फाल्गुनी स्मारक के चेंबर में कुछ आवश्यक विषयों पर चर्चा कर रही थी कि हेड नर्स सिस्टर मार्था ने अंदर आने की इजाजत मांगी। उसके हाथ में किसना की कविताओं की पांडुलिपि थी। फाल्गुनी के हाथ में उन्हें थमाकर वह चली गई। किसना की याद फिर ताजी हो उठी फाल्गुनी के जेहन में और कविता संग्रह के पन्ने पलटने लगी। ' झरोखे जिंदगी के ' इसी नाम का संग्रह था। प्रत्येक पंक्ति में उसे मृत्यु के कगार पर डगमगाते किसना की मासूम चितवन नजर आ रही थी। कविताओं में डूबी पत्नी को देख स्मारक ने कहा, फाल्गुनी मैं भी