बाबुल का घर

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मायके से विदा होते हुए अवनी संज्ञा शून्य सी हो गई थी।जैसे वो अपने होशोहवास में नहीं थी।आँसू थे कि रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।पति अखिल ने किसी तरह उसे संभाला अवनी सारे रास्ते खामोश सी मूर्ति बनी बैठी रही।अखिल ने उससे कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन वो तो किसी और ही दुनिया में थी।वो अतीत की स्मृतियों में जैसे खो सी गई थी।अवनी दो भाइयों की इकलौती सबसे छोटी बहिन थी, इसलिये सबकी चहेती थी। उसे याद है जब उसका भाइयों से झगड़ा होता था, पापा उसी का पक्ष लेते थे और भाइयों को ही