इंसानियत - एक धर्म - 7

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सघन चिकित्सा कक्ष का दरवाजा खुला और उसमें से डॉक्टर मुखर्जी बाहर निकलते हुए अपने हाथों से दस्ताने खींचते हुए दयाल बाबू की तरफ देखते हुए बोले ” शायद रमेश आपका बेटा है । “ ” जी ! डॉक्टर साहब ! ” दयाल बाबू बोले ” अब कैसा है मेरा बेटा ? “ डॉक्टर मुखर्जी ने अपनत्व से दयाल बाबू के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए बोला ” मैं आपकी मनोदशा को समझ सकता हूं लेकिन आपको निराश होने की कोई जरूरत नहीं है । शुक्र है भगवान का कि लाठी की मार का असर उसके दिमाग तक नहीं पहुंचा है