बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 19

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भाग - १९ बेनज़ीर की बात से मैंने खुद को बड़ा छोटा महसूस किया। वह अपनी बात को आगे बढ़ाती हुई कहती हैं, 'जिस दुकान के सामने उसने रिक्शा रोका, वह एक ठीक-ठाक दुकान लग रही थी। अंदर एक साथ पन्द्रह-सोलह लोगों के बैठने की जगह थी। मुन्ना ने उसे भी अंदर चलने के लिए कहा तो वह हाथ जोड़कर बोला, 'बाबू जी, मीठा हमरे लिए जहर है। हमें सूगर है।' बहुत कहने पर वह समोसा खाने को तैयार हुआ। दो समोसा, बिना शक्कर की चाय लेकर बाहर रिक्शे पर ही बैठकर खाने लगा। मैंने और मुन्ना ने लवंगलता खाई