15. इन दिनों स्मारक, काफी अस्वस्त दिखाई देता। काम की व्यस्तता और अत्यधिकता के चलते न तो वह समय से खाना खाता था और न ही पूरी नींद मिलती थी। कई बार तो दम तोड़ते मरीज उसी के हाथों पर वमन कर देते थे, परंतु इस तपस्वी नि:स्वार्थ डॉक्टर के माथे पर शिकन की एक भी लकीर न उभरती, परंतु न जाने क्यों वह प्राय: उदास रहने लगा था। फाल्गुनी को आसपास न पाकर कुशकाओं से उसका जी घबराने लगता। शाम से ही गुलाबी ठंड पड़ने लगी थी। नवरात्रि के उत्सव की गूंज गांव में बजते ढोल-ताशे की ताल के