बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 18

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भाग - १८ मुश्किल से दो घंटा हुआ होगा कि मुझे लगा जैसे मेरे घुटनों के पास कुछ है। मैं उठने को हुई तभी मुन्ना धीरे से बोले, 'कुछ नहीं, मैं हूं।' मैं शांत हो गई। मैं डरी कि, नीचे की बर्थ पर कई लोग सो रहे हैं। कोई जाग गया तो कितनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। कंबल थोड़ा हटाकर नीचे देखा तो राहत की सांस ली, नीचे कोई नहीं था। मुन्ना के हाथ हरकत कर रहे थे। मेरा हाथ भी उसके हाथों के ऊपर पहुंच गया था। देर नहीं लगी उनके हाथ ऊपर और ऊपर तक आए तो मैं भी