जी हाँ, मैं लेखिका हूँ - 5

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कहानी-- 5- ’’मैं पानी हूँ ’’ मुर्गे ने बांग दी है। भोर की बेला है। बस, सवेरा होनेे वाला है। कुछ ही देर में सूर्य अपनी प्रथम रश्मियाँ पूरी सृष्टि पर बिखेर देगा, किन्तु रात की परछाँइयाँ अब भी पूरे गाँव पर पसरी हैं। उध्र्वगामी रात्रि गहरी नही है। सब कुछ स्पष्ट दिख रहा है। सामने नीम का पेड़, गाँव के कच्चे-पक्के घर, फूस की दलान, कुआँ व कुएँ के इर्द-गिर्द बना पक्का चबूतरा, पीपल का पुराना पेड़ तथा पास में शिव जी का मंदिर । रज्जो के घर के सामने का पूरा दृश्य उसे स्पष्ट दिख रहा है। कच्ची