पिता : एक संघर्ष

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‘पिता’ : एक संघर्ष हर महीने की आखिरी तारीख हमारे लिए किसी त्योहार से कम नहीं होती थी क्योंकि उस दिन पापा की तनख्वाह जो मिलती थी | जैसे – जैसे वह दिन नज़दीक आता ; हम दोनों भाई – बहनों की ख्वाहिशों की पर्चियाँ भी बढ़ती जाती | (हम चार भाई – बहन हैं – बड़ी बहन की शादी हो गई है और बड़े भाई इंजिनीयरिंग करने ‘रुड़की’ गए हुए हैं |”) सबसे लंबी मेरी पर्ची होती थी | मेरे कानों की बालियाँ, नए रिब्बन, फ्रॉक की लटकन और भी न जाने क्या – क्या ? जैसे ही