त्रिखंडिता - 22 - अंतिम भाग

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त्रिखंडिता 22 'मैं आपकी पत्नी नहीं हूँ | ' -पर मैं तो मानता हूँ | 'मान लेने से कोई किसी की पत्नी नहीं हो जाती | ' -तो इधर आओ| उन्होंने उसे बांह से पकड़ा और घर के उस कोने में ले गए, जहां छोटा सा एक मंदिर बना था | मंदिर में माँ दुर्गा की प्रतिमा थी | उन्होंने माँ के सामने थाल में रखे सिंदूर को उठाया और उसकी मांग भर दी | वह अवाक खड़ी रही, तो बोले -मैं ईश्वर को साक्षी मानकर तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार करता हूँ | पूनम संज्ञा शून्य थी | उसने अपनी