लहराता चाँद - 34

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लहराता चाँद लता तेजेश्वर 'रेणुका' 34 संजय ऊपर अपने कमरे के खिड़की पर खड़ा था। कोई भूमिका बिना ही उसके कान सब कुछ सुन रहे थे। पहली बार उसे लगा अपनी बच्चियों की दिल की बात वह कभी समझ ही नहीं पाया। वह हमेशा यही समझता रहा कि वह अपने बच्चों के रहन सहन, खानापीना सभी सही तरीके से कर रहा है कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन आज वह ये समझ गया कि उसकी बच्चियों ने कभी अपने मन की बात उससे बाँटी ही नहीं। वे अपने आप में घुटते रहे मगर उससे कुछ कहा ही नहीं। तो क्या