11. फाल्गुनी जी-तोड़ म्हणत कर रही थी अस्पताल इ निर्माण पर | अस्पताल लगभग बन के तैयार हो चुका था और अब फर्नीचर तथा इंटीरियर डेकोरेशन का काम चल रहा था | अपने पति स्मारक के साथ-साथ फाल्गुनी का भी यही सपना था की अस्पताल की ख्याति देश-विदेश तक फैले | उसे न तो खाने की सुध रहती, न सोने की | शायद इसलिए उस का मुख म्लान दिखने लगा था | अपने लिए मानो बिलकुल उदासीन हो उठी थी | श्रृंगार करे भी तो किसके लिए | हंसबेन भी पुत्रवधु की संसार के प्रति उदासीनता और गिरती सेहत के