जी हाँ, मैं लेखिका हूँ - 3

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कहानी -3- आदमकद दर्पण के सामने खड़ी हो कर वह स्वयं को ध्यानपूर्वक देख रही थी। उसने अपना चेहरा अनेक कोणों से घुमा-घुमा कर देखा। पुनः स्वयं को नख से शिख तक देखा। भरपूर दृष्टि व हर कोण से देखने के पश्चात् वह स्वयं पर मुग्ध होती हुई सोचने लगी , ’’ वह तो आज भी आज भी अत्यन्त आर्कषक लगती है। उसका आर्कषक लम्बा कद, गेंहुआँ रंग, तीखे नाक-नक्श, तथा इस उम्र में भी शारीरिक गठन में यथोचित् कटाव व लचीलापन! ’’ वह स्वयं से बातें करती हुई बुदबुदा उठी,’’ वाह, मोनिका चन्द्रवंशी! तुम तो आज भी गज़ब की