जी हाँ, मैं लेखिका हूँ कहानी 2- ’’ पहा़ड़ों पर नर्म धूप ’’ मेरी आँखें उसे ढूँढ रही थी। उसे कहीं न पा कर मेरी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। न जाने क्यों? मैं उसे ठीक से जानता तक नही। उसे ठीक से जानना तो दूर, अभी उसका नाम तक नही जानता, फिर भी उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। मैंने कलाई घड़ी पर दृष्टि डाली, नौ बज रहे थे। मैं समय से आधे घंटे पूर्व ही कार्यालय आ गया था। कार्यालय के बाहरी कक्ष में जो कि स्टाफ रूम है, वहाँ बैठ कर उसकी प्रतीक्षा करने लगा। इस समय एक-एक