तीसरे लोग - 9

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9. नीला आकाश शयमवर्णी मेघों का आवरण ओढ़े, ललचाई दृष्टि से अपनी ओर ताकती प्यास धरा को आज तृप्त करने के लिए उमड़-घुमड़ आगमन का संदेशा दे रहा था। उनकी सिंह गर्जना को सुनकर फाल्गुनी कालिदास रचित मेघदूत की यक्षिणी-सी सिहर उठी। स्मारक की सुकुमार छवि आज फिर उसकी सुप्त कामनाओं को निरंकुश करने लगी। लॉन में झूल रहे हिंडोले में बैठकर हौले-हौले पींगे मारती हुई एक गीत गुनगुना उठी --- 'रदीयड़ी रात मां, हूं ऐकली बेसी ने जोऊं तारी बाट रे ....' (विलाप करते रात्रि में, अकली बैठकर मैं तेरी राह देख रही हूं ...) वर्षा की मोटी-मोटी बूंदों