दिन बीता, महीने गुज़रे और आज तीन बर्ष हो गए तुमसे बिछड़े हुए..समय अपने प्रारब्ध गति से आगे बढ़ रहा है, तुम्हारे मेरे अपने..अपनी अपनी ज़िन्दगी की भागादौड़ी में व्यस्त हो गए है, बहुत कुछ बदल गया है..लाज़मी है, परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है, बदलना तो सबको है लेकिन मैं आज भी वही खड़ी हूं, उसी हॉस्पिटल के आईसीयू वार्ड के दरवाज़े पर सिर टिकाएं, तुम्हारी आंखे मुझे देख रही है मैं तुम्हें, असहाय नज़रों से डॉक्टर की तरफ़ देखती हूं और वो मुझसे नज़रे चुराए दूसरे पेशेंट के पास चला जाता हैं..मैं आज भी वही खड़ी हूं, तुमसे