1. नर्मदा नदी के तट पर जलती चिता की लपटों का आग्नेय रंग अस्ताचल में ढलते सूरज की लालिमा में विलीन होता चला जा रहा था। फाल्गुनी के विलाप के संग आज नर्मदा की लहरें भी " छाजिया " (मृत्यु पर किए जाने वाला समूह संताप) गा रही थी। उन लहरों में आज प्रणय का मधुर संगीत कहां ? बस थी तो केवल दग्ध हृदय का करुण क्रंदन। कुछ दिनों पहले तक यही लहरें साक्षी थी फाल्गुनी के प्रेम एवं स्मारक की बांसुरी से उठती मधुर तान की। शायद इसलिए लहरे आज उनके चिर बिछोह से हाहाकार करती प्रतीत हो