बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 9

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भाग - ९ इस बीच चिकनकारी और कम हो गई। खाना-पीना, अम्मी का काम, दुकान का भी कुछ ना कुछ देखना पड़ता था। इन सब से रात होते-होते इतना थक जाती थी कि, रात में उंगलियां जल्दी ही जवाब देने लगतीं।' '.. और ज़ाहिदा-रियाज़, यह टाइम तो उनका भी होता था।' यह सुनते ही बेनज़ीर हंस पड़ीं । फिर गहरी सांस लेकर बोलीं, '....ज़ाहिदा-रियाज़ उफ... दोनों मेरे लिए एक अजीब तरह की बला बन गए थे। यह बला पहले मुझे खूब मजा देती, लेकिन जब छूटे हुए कामों की तरफ ध्यान जाता तो बड़ा कष्ट देती। समझ ही नहीं पा