अपने-अपने कारागृह - 9

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अपने - अपने कारागृह -8 ऐसी ही न जाने कितनी बातें हैं जो उषा के जेहन में उमड़ घुमड़ कर उसे परेशान कर रही थीं । उन्होंने अपना घर लखनऊ में बनवाया था पर अपने स्वभाव के कारण वह आस-पास वालों से कोई संबंध नहीं रख पाई थी । जब वह घर जाती, कोई उनसे मिलने आता भी तो अपनी प्रशंसा के इतने पुल बांधने लगती है कि लोग किनारा करने लगते । आज उसे महसूस हो रहा था कि इंसान चाहे शौहरत की कितनी भी बुलंदियों को क्यों न छू ले पर उसके पैर सदा जमीन पर ही रहनी चाहिए