हंसता क्यों है पागल - 10 (अंतिम भाग)

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सुबह जागते ही मोबाइल हाथ में उठाया तो अकस्मात ज़ोर से हंसी आ गई। अब अपने ही मोबाइल को देख कर हंसना.. भला ये कोई बात हुई? लेकिन अपना मोबाइल भी अपने नाम की ही तरह है। इसे हम ख़ुद नहीं, बल्कि दूसरे लोग काम में लेते हैं। किसी को अपना ख़ुद का नाम लेने की ज़रूरत शायद ही कभी मुश्किल से पड़ती होगी। दूसरे लोग ही दिन भर लेते हैं हमारा नाम। ठीक इसी तरह मोबाइल भी उसी सब से भरा रहता है जो दूसरे लोग हमें भेजते हैं। जो कुछ हमने भेजा, वो तो इससे निकल कर चला