कंटीन्यू पार्ट -4अपनी नाकामियों का कसुरबार अपनों को ही बना देना कहां तक सही है.. आज कल नहीं ये तो ज़माने से चला आ रहा है जिस तरह शाहिद ने और उसकी अम्मी ने अपनी खुद की नाकामी का कसूरवार निम्मो को बना दिया था हालांकि इस समाज में आज भी बहुत से लोग ऐसे है जो ऐसे इल्म के चक्कर अपनों को या फिर किसी और की बली दें देते हैं..हमारे इस समाज में ये ज़रूरी भी नहीं कि निम्मो जैसी लड़कियों को ऐसा भोगना पड़ता है.. वो कबिता, परमिंदर या रोज़ी भी होती है.. यदि शिक्षा का आभाव