टूटते भ्रम

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टूटते भ्रम मैं सुबह को उस गली से गुजरता, तो वह अपनी छत पर या छत पे बने कमरे की खिड़की पे खड़ी नजर आती। उसे देखकर अनायास ही मेरी दृष्टि उस पर चली जाती। एक दिन वह मुझे देखकर मुस्करायी तो मैं एकदम ऐसे चैंक गया, जैसे किसी ने ठहरे हुए पानी में कंकड़ फेंककर उसमें हलचल पैदा कर दी हो। दिल-ओ-दिमाग में एक कम्पन-सा महसूस करने लगा, जैसे मुझे अचानक बिजली का करंट लग गया हो, और मेरा शरीर एकदम झनझना उठा हो। मैंने एकदम उसकी तरफ से नजरें हटा लीं और अपने रास्ते चला गया। दूसरे दिन