सुबह हुई तो हरसी और संजय अपने खेतों की ओर गये। वहाँ केदार पहले से मौजूद था। उसे पहले ही अंदाजा हो गया था कि हरसी और संजय सुबह सुबह खेतों की तरफ़ ज़रूर आएंगे। हरसी को देखते ही केदार बोला "अरे हरसी, तुम। कब आई?" हरसी ने मुँह फेर लिया। संजय ने कहा "प्रणाम ताऊ जी।" "सदा प्रसन्न रहो बेटा, क्या नाम है तुम्हारा?" "संजय।" "किसी चीज़ की जरूरत हो तो बता देना। थके हुए हो। सुबह सुबह घूमने आने की कहाँ जरूरत थी।" "घूमने नहीं ताऊ जी, यहाँ अपनी जमीन देखने आये हैं।" संजय ने कहा। "तुम्हारी कहाँ? ये तो