सम्पादक

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नीलेश अपने प्रथम लघुकथा संग्रह के कवर पेज को लेकर द्वन्द में था..तीन चार स्केच सामने विखरे पड़े थे..एक से बढ़कर एक..इसी में से एक फाइनल करना था..उहापोह की स्थिति थी तभी पोस्ट मैन ने आवाज दी.."बाबूजी आपकी डाक " लिफाफा #हिमांशु_प्रकाशन से था..उत्कंठित होकर खोला और मुस्करा पड़ा..व्यंग्य भरी मुस्कान..कम से कम दो दर्जन लघुकथायें हिमांशु प्रकाशन से अस्वीकृत होकर वापस आ चुकीं थीं ऐसी स्थिति में इस स्वीकृति से व्यंग्यात्मक मुस्कान आनी ही थी..तुरंत हिमांशु प्रकाशन को फोन लगाया..फोन के पार