एपीसोड ---44 रास्ते भर उसे होली की दौज की पूजा याद आ रही है। पूजा के बाद उसकी नानी घर के बाहर के कमरे में एक लम्बा मूसल उठाकर चल देती थीं, “चलो बैरीअरा कूटें।” नन्हीं वह अपनी मम्मी से पूछती थी, “मम्मी ! ये बैरीअरा क्या होता है?” “बैरी अर्थात दुश्मन। ये एक तरह का टोटका किया जाता है कि सारे वर्ष दुश्मन परेशान न करें।” बाहर के दरवाज़े के पास एक कोने में थोड़ी घास डालकर उस पर पानी छिड़क कर नानी व बाद में घर की सारी स्त्रियाँ मूसल से उसे कूटती थीं व गाती जाती थीं,