अपने-अपने इन्द्रधनुष (11) हरियाली से झूमती सृष्टि मुझे सदा आकर्षित करती रही है। जल भरे बादल न जाने कहाँ से आ कर अकस्मात् भूमि पर बरसने लगते हैं, और मन हर्षित हो उठता है। सांयकाल का समय है। अभी-अभी बारिश थमी है। नभ में उगे इन्द्रधनुष को देखकर मन किसी शिशु की भाँति किलकारियाँ भरने लगा है। सूर्य की स्वर्णरश्मियों के प्रभाव से उगा अर्धवृत्ताकार इन्द्रधनुष आकाश के मध्य देर तक चमकता रहा। उसके विलुप्त होते ही अकस्मात् कई छोटे-छोटे इन्द्रधनुष नभ में उग आये। उप्फ्! कितनी मनमोहक छटा नभ में व्याप्त हो गयी। एक नभ में एक साथ कई