नैनी के किनारे

  • 4.3k
  • 1k

भीड़ हमेशा विचलित और भ्रमित करती है जबकि शांति में मन अपने गहरे उतरकर कुछ नायाब ढूंढ लाता है। ऐसा ही कुछ अभी मेरे साथ भी हो रहा था। मैं अपने नये उपन्यास का खा़का मन में खींच चुका था,पर उसकी शुरुआत का सिरा ही नहीं मिल रहा था मुझे और अब एक ही राह बची थी मेरे पास, अकेलापन और शांति। मैंने निश्चय किया कि कुछ दिन जॉब से छुट्टी लेकर, मैं इस शहर से दूर कहीं शांत वादियों में अपना ठिकाना बना लूं। मुझे अपने दोस्त के खाली पड़े घर का ख्याल आया,वहां मैं 4 साल पहले भी