बालमजदूरी (लघुकथा)

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जनवरी का महीना तथा चारों तरफ कुहासा घिर चुकी थी ठंढी हवा चल रही थी, मानो रक्त जमा देती और इसी बीच नौ-दस साल की एक गरीब लड़की फटी चादर ओढ़कर हाथ में कुछ किताबें लेकर जल्दी-जल्दी विधालय जा रही थी तभी पास से एक कार गुजरी और थोड़ी देर वापस उसी लड़की की तरफ मुड़कर आई,लेकिन वह लड़की इतनी जल्दी-जल्दी चल रही थी, मानो उसे विधालय जाने में देर हो गई हो इसी बीच वह कार उसके पास आकर रुकी और एक अमीर व्यक्ति उस कार से उतरे,तब तक वह लड़की और