जिंदगी मेरे घर आना - 14

(13)
  • 5.4k
  • 2
  • 1.5k

जिंदगी मेरे घर आना भाग- १४ नेहा में वही पुरानी चपलता लौट आई थी बस बीच-बीच में रोष की लालिमा की जगह सिंदूरी आभा छिटक आती, चेहरे पर। सहेलियों के बहुत कुरेदने पर भी सच्चाई नहीं आ सकी होठों पर। लेकिन जब एंगेज्मेंट का दिन करीब आने लगा तो स्वस्ति को राजदार बना ही लिया। सुन कर किलक उठी स्वस्ति... नाराज भी हुई। - -‘हाय! सच नेहा, जा मैं नहीं बोलती तुझसे...इतना गैर समझा मुझे... बिल्कुल भी बात नहीं करनी तुझसे।‘ - लेकिन छलकती खुशी ने ज्यादा देर तक नाराजगी टिकने नहीं दी। दूसरे ही पल उसका कंधा थाम बोली-