रिक्शावाला

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आज बहुत दिनों बाद अपने परममित्र से मिलने जाने का उत्साह मुझे मन ही मन बहुत व्याकुल किये जा रहा था। कब जल्दी पहुँचू ... कब उससे गले मिलू और अपने दिल की किताब उसके सामने खोलूँ। बंशी काका के खेत से ऊख चुराना ; गुल्ली - डण्डा खेलते हुए हमेशा निशाना पप्पू चाचा के आमों पर मारना ; गर्मी के महीने में मड़ई पर तासों का वो खेल ! जिसकी जीत पर हर बार दो रूपये का पारले जी आना ; भैंस चराते हुए उसकी पीठ पर बैठकर गड़ही में जाकर नहलवाना। बचपन की शरारतें मन में