सुरतिया - 3

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आप सोच रहे होंगे कि हम इतना सब क्यों बता रहे? अरे भाई! न बतायें, तो आप बाउजी को जान पायेंगे? नहीं न? तो चुपचाप पढ़िये उनके बारे में. “क्या बाउजी..... कब से आवाज़ें लगा रही. आप सुनते ही नहीं. कितनी बार कहा है कान की मशीन लगाये रहा कीजिये. अगर नहीं लगानी थी, तो खरीदवाई ही क्यों? पच्चीस हज़ार की मशीन पड़ी है बिस्तर पर और मैं गला फाड़-फाड़ के पागल हुई जा रही हूं.” सरोज, बाउजी की मंझली बहू की झल्लाई हुई आवाज़ इतनी तेज़ थी, कि कोई अगर बाहर के गेट पर होता, तो भी सुन लेता.