नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 4. किसी स्कूटर के स्टार्ट होने के स्वर से जैसे में नींद से जगी. मरे हुए लम्हों को बार-बार अपने भीतर जिंदा करते हुए,मैं प्रिंसिपल ऑफिस पहुच गई थी. कैशियर के कमरे में पँहुची, उसने खड़े होकर नमस्ते की और कुर्सी पेश की. तनख्वाह रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद उसने मुझे छोटे से काम का अनुरोध किया, जो प्रोफेसर भारद्वाज ही कर सकते थे.प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर आते हुए मैं सोच रही थी जब मैं इनसे यह बात करूंगी तो ये क्या कहेंगे! झुक आएंगे मेरी तरफ, और आंखों में अजीब सा भाव लाकर(जो