मुखौटा - 11

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मुखौटा अध्याय 11 'मैं हत्यारिन हूं' ऐसा मेरी मां अपने शब्दों से व्यक्त कर रही है, मेरे कोमल मन में आघात हुआ। उस आघात की याद आज भी मेरे मन में वैसा का वैसा ही है। मेरे पिताजी जब बिस्तर पकड़ लिए थे मेरी मां ने ही उनकी एक छोटे बच्चे की जैसे देखभाल की. मुझे लगा जैसे कमजोर क्षणों में मुझसे जो एक बात कही दी उसका प्रायश्चित ढूंढ रही है । संपूर्णता को प्राप्त कर लिया जैसी एक भावना के साथ बैठी सुभद्रा को देख मुझे आश्चर्य हुआ। इसको लगता है कि इसका इसके पति के साथ जो