जिंदगी मेरे घर आना - 7

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जिंदगी मेरे घर आना भाग – ७ अब लगता है, यह घर का यही माहौल वह भी तो चाहती थी, लेकिन किसी से सहयोग मिले, तब तो। डैडी के लिए तो घर का मतलब था, पेपर, ब्रेकफास्ट, डिनर (लंच वे आॅफिस में लिया करते थे) और नींद... बस। और मम्मी इतना कम बोलतीं - सिर्फ काम की बातें, बस। और भैया को रौब जमाने से ही फुर्सत नहीं। महीने में दस दिन तो उसके साथ लड़ाई ही रहती... रौब तो ये शरद भी कम नहीं जमाता, पर दूसरे ही पल मना भी लेता है, अपनी गलती मान भी लेता है।