तपती रेत पर

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लघुकथा-- तपती रेत पर --राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव, ‘’जब भी मुँह खोलेगी आग उगलेगी।‘’ ‘कोई ना भी बोले; तो भी दीवालों से बुदबुदा कर सारा वातावरण तनावग्रस्‍त और उत्तेजित कर देगी। एक ही शब्‍द बोलकर! कोई भी, कुछ भी, अस्‍वभाविक घटना कर बैठेगी; किसी को कुछ ज्ञात नहीं हो पायेगा कि हादसे का मूल कारण क्या है....!! सारा दोष उत्तेजित होने वाले के सर पर, सभी प्रकार के दुष्‍प्रभावों के प्रति जिम्‍मदेार, प्रामाणिक रूप में।‘ ‘’उलूल-जलूल हरकतें निर्वीकार रूप में सहन करलो-तो ठीक...। यह सिलसिला निरन्‍तर चला आ रहा है। जीवन में अनेकों