यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम

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छोटे-छोटे बल्बों की झालरों से घर और दरवाज़े झिलमिला रहे थे ।जैसे हर नन्हा बल्ब दुल्हन की ख़ुशी का इज़हार कर रहा हो।मैं उन्हें निहारकर उनमें अपनी मॉं के हंसते मुस्कुराते चेहरे को महसूस कर रही थी,जैसे वह खिलखिला कर आशीर्वाद दे रहीं हो-तुम्हारा जीवन सदा ख़ुशियों से भरा रहे ऐसा मुझे आभास हुआ ।मेरी भाभी और सखियों ने गहने पहनाकर साज -श्रृंगार कर साड़ी पहनाकर मुझे तैयार किया था ।मैं अपने आने वाले समय को लेकर चिंतित थी,तभी भैया आये मेरे सिर पर हाथ फिराकर बोले -तुमने खाना खाया? मैंने नहीं में सिर हिलाते हुए उत्तर दिया ।दीदी भी