"रेत का घर", आज अचानक मेरी स्मृति में उभर आया, बचपन के उन सुनहरे औझल हुए पलों को स्मरण कर हृदय भर सा आया। एक अनोखी सी प्रसन्नता मेरे अंदर कौंध रही थी। शाम का समय आसमान में बादल ओर मेरे नंगे पैरों के नीचे ठंडी ठंडी रेत जिसके स्पर्श ने मुझे में बचपन की सारी यादें ताजा कर दीं।कितनी खुशियां थी उन दिनों में कितनी ही कल्पनाएं ओर उनको अपने हाथों में रेत भरकर जमीन पर उतारते, आखिर वो बचपन कितना हसीन था। क्या कोई भी वो बच्चा जो अपनी कल्पनाओं को सूखे गीले रेत