गूंगा गाँव गाँव की धरा का अपना परिवेश होता है और अपनी परिधि। गाँव, गाँव होता हैं़, उसकी अपनी परम्परायें होतीं हैं, उसके अपने कानून होते हैं। संसद में बने कानून का इसके परिवेश और परिधि पर जितना असर होना चाहिये उतना नहीं हो पाता। गाँव में वर्षों से मजदूरी की दरें सरपंच अथवा मुखिया के घर से तय की जाती हैं। गाँव में सभी उसी रेट पर अमल करते हैं। इस बात में गाँव के बड़े-बड़ों का हित निहित होता है। सरकारी रेट हर वर्ष अखबारों में छपती है, किन्तु गाँव के मजदूरों को कभी नहीं लगता