मेरे घर आना ज़िंदगी - 13

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मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (13) थक चुकी थी। चाहती थी किसी शांत पहाड़ी जगह जाकर गर्मियां बिताऊँ। अपने अधूरे पड़े उपन्यास "लौट आओ दीपशिखा" को भी पूरा कर लूं। मैंने शिमला में हरनोट जी से पूछा कि क्या वे शिमला में राईटर्स होम में मेरे और प्रमिला के 15 दिन रहने का इंतजाम कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि” राइटर्स होम तो उजाड़ पड़ा है अब। वहां कंप्यूटर की क्लासेस चलती हैं। मैं आपके रहने के लिए एक कमरा वाईएमसीए में बुक करवा देता हूं। वहीं सीढ़ियां उतरते ही मेरा यानी हिमाचल पर्यटन विभाग का ऑफिस है