जब मेरी शादी हुई थी मैं मात्र पंद्रह वर्ष की थी |दुबली-पतली गेहुएं रंग की ...शरीर में भराव अभी शुरू ही हुआ था |पति की उम्र भी बीस से अधिक न थी ,पर वे थे बड़े रंगीन मिजाज |शादी के बाद जब मेरी सहेली ने उनसे पूछा –जीजा जी हनीमून पर कहाँ ले जाएंगे मिताली को ,तो वे मेरी तरफ ध्यान से देखते हुए बोले—इन्हें ....अरे,आप होती तो कुछ सोचता भी |यह कहकर इन्होंने सहेली के उभार पर अपनी नजर गड़ा दी |उनका यह मज़ाक मुझे भीतर तक चुभ गया |कहाँ तो मैं इन्हें तन-मन ,पूरी भावना और संवेदना से परमेश्वर माने बैठी हूँ और ये मेरे ही दोस्तों