यादों का सफर - 5

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जब से मै जान पाई थी कि जानू की जिन्दगी अलग है मै ने ख़्वाब देखना बन्द कर दिया , अब जो प्रेम पनपा वो निस्वार्थ भाव से, अपने ही दिल में करना।लेकिन हूं तो आखिर मनुष्य ही है, जब प्रेम होता कुछ प्रेमी से कुछ चाह हो जाती है, मुझे सिर्फ शब्दों का सहारा चाहिए था अगर सच में प्यार है मुझे शब्दों का सहारा मिल भी रहा था इस तरह से कभी झगड़ा कभी बाते कभी हसना कभी रोना।आज भी जब बारिश होती है वो पूरा लम्हा याद आ जाता है जब हम जानू के साथ बगीचे में